5 August 2025

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किसानों की आवाज और ईमानदार राजनीति की पहचान, सत्यपाल मलिक का निधन—भारतीय जनमानस को गहरा आघात

छात्र राजनीति से राज्यपाल पद तक का प्रेरक सफर
मेरठ विश्वविद्यालय से लेकर जम्मू-कश्मीर, गोवा और मेघालय जैसे राज्यों तक

बेबाक बोल और निडर विचारों के प्रतीक
सत्ता में रहते हुए भी सत्ताधारियों की आलोचना से नहीं झिझके

किसानों के मसीहा के रूप में अविस्मरणीय पहचान
तीन कृषि कानूनों के विरोध में मुखर होकर किसानों के साथ मजबूती से खड़े रहे

जन सरोकारों को समर्पित एक सच्चे जननेता को श्रद्धांजलि
सत्ता को सेवा मानने वाले सत्यपाल मलिक की राजनीति हमेशा याद की जाएगी

      नई दिल्ली। भारतीय राजनीति को उस वक्त गहरा झटका लगा जब पूर्व राज्यपाल और वरिष्ठ राजनेता सत्यपाल मलिक के निधन का समाचार सामने आया। वे न केवल एक अनुभवी और बेबाक नेता थे, बल्कि आम जनता, खासकर किसानों की आवाज के रूप में उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनाई थी। सत्यपाल मलिक का जाना भारतीय लोकतंत्र और जनपक्षधर राजनीति की अपूरणीय क्षति है।

राजनीतिक जीवन की शुरुआत से लेकर शिखर तक

      सत्यपाल मलिक का राजनीतिक सफर मेरठ विश्वविद्यालय से शुरू हुआ, जहां वे छात्रसंघ अध्यक्ष बने। युवावस्था से ही उनके भीतर जनसरोकारों के लिए लड़ने की भावना थी। उन्होंने सामाजिक न्याय और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा को अपना जीवन उद्देश्य बना लिया था। विधायक से लेकर सांसद और फिर कई राज्यों के राज्यपाल बनने तक का उनका सफर प्रेरणादायक रहा है। वे उत्तर प्रदेश, गोवा, बिहार, जम्मू-कश्मीर और मेघालय के राज्यपाल पद पर कार्यरत रहे।

बेबाक और स्पष्टवादी स्वभाव

      सत्यपाल मलिक अपने बेबाक और स्पष्टवादी विचारों के लिए हमेशा चर्चा में रहते थे। चाहे सत्ता में रहे हों या बाहर, उन्होंने हमेशा सच्चाई के पक्ष में खड़े रहकर अपनी बात कही। उन्होंने कई बार नीतियों और सत्ताधारी दलों की आलोचना भी की, जब उन्हें लगा कि यह आम जनता के हितों के खिलाफ है। विशेषकर किसानों के मुद्दों पर उन्होंने जिस निडरता से अपनी आवाज उठाई, उसने उन्हें आम किसानों का मसीहा बना दिया।

किसान आंदोलन और सत्यपाल मलिक

      सत्यपाल मलिक का नाम किसान आंदोलन के दौरान सबसे ज्यादा चर्चा में आया। उन्होंने खुलकर तीन कृषि कानूनों की आलोचना की और सरकार को आगाह किया कि ये कानून किसानों के खिलाफ हैं। उनके द्वारा कही गई बातें किसानों के विश्वास का प्रतीक बन गईं। वे उस दौर में सत्ता के खिलाफ खड़े होकर भी किसानों के समर्थन में मुखर रहे, जो भारतीय राजनीति में विरले देखने को मिलता है।

व्यक्तित्व और विरासत

      उनका जीवन राजनीतिक पदों से अधिक सिद्धांतों और जनहित को समर्पित रहा। उन्होंने कभी भी सत्ता को साध्य नहीं, बल्कि सेवा का माध्यम माना। उनके व्यक्तित्व में सहजता, विनम्रता और स्पष्टता का अद्भुत मेल था, जो उन्हें एक जननेता बनाता था।

शोक और श्रद्धांजलि

      सत्यपाल मलिक जी के निधन पर देश के कोने-कोने से शोक संदेश आ रहे हैं। उन्हें याद किया जा रहा है एक ऐसे नेता के रूप में, जो सत्ता से नहीं, बल्कि जनता से जुड़ा हुआ था। आज जब हम उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, तो यह भी ज़रूरी है कि उनके दिखाए रास्ते पर चलकर राजनीति को फिर से जनहित और सच्चाई की राह पर ले जाया जाए।

      ईश्वर से प्रार्थना है कि दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें और उनके परिवार, समर्थकों तथा समस्त देशवासियों को यह दुःख सहन करने की शक्ति दें।