4 August 2025

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’हमारा संविधान-हमारा स्वाभिमान’ : संविधान भारत की सदियों पुरानी संस्कृति, इतिहास और परंपराओं का आइना : मुख्यमंत्री





रायपुर :मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय आज प्रातः संविधान दिवस पदयात्रा कार्यक्रम में शामिल हुए। संविधान दिवस पदयात्रा पंडित जवाहर लाल नेहरू स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय सभागृह से प्रारंभ होकर अंबेडकर चौक पर समाप्त हुई। मुख्यमंत्री ने डॉ. भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें नमन किया। इस पदयात्रा में उप मुख्यमंत्री श्री अरूण साव, खेल एवं युवा कल्याण मंत्री श्री टंकराम वर्मा, वन मंत्री श्री केदार कश्यप, खाद्य मंत्री श्री दयालदास बघेल, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्री धरमलाल कौशिक, विधायकगण श्री इंद्र कुमार साहू, गुरु खुशवंत साहेब, श्री अनुज शर्मा, महिला आयोग की सदस्य श्रीमती लक्ष्मी वर्मा और युवा आयोग के अध्यक्ष श्री विश्वजीत तोमर शामिल थे।
मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय ने इस अवसर पर पंडित जवाहर लाल नेहरू स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय सभागृह में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि हमारा संविधान भारत की सदियों पुरानी संस्कृति, इतिहास और परंपराओं का आइना है। यह संविधान हमारे सदियों के संघर्ष, अनुभव और उपलब्धियों का प्रतिफल है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में आज के दिन 26 नवंबर से संविधान दिवस 2024 के आयोजन की शुरूआत हुई है। आज भारत के संविधान को आत्मसात किए 75 वर्ष पूरे हो गए हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारे संविधान निर्माताओं ने जहां पर मौलिक अधिकारों की बात लिखी है, वहां भगवान श्रीराम, माता सीता और भइया लक्ष्मण की तस्वीर अंकित की है। उन्होंने कहा कि यह तस्वीर तब की है जब भगवान श्रीराम लंका विजय के बाद अयोध्या लौट रहे थे। हमें इस बात को समझना होगा कि हमारे संविधान निर्माताओं ने इस तस्वीर के माध्यम से हमें क्या संदेश दिया है। संविधान में ऐसे ही अनेक चित्र और संकेत हैं, जिनके माध्यम से संविधान निर्माताओं ने इंगित किया है कि हमें भारतीय संस्कृति और जीवन मूल्यों के साथ लोकतंत्र को आगे बढ़ाना है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि यह भी हमारे संविधान की एक बड़ी विशेषता है कि इसमें परिवर्तनशील समय के अनुरूप आवश्यकता पड़ने पर संशोधन का भी प्रावधान है। हमारे संविधान निर्माताओं ने देश पर अपनी इच्छाओं और विचारों को लादा नहीं, बल्कि अपनी दूरदर्शिता से भावी पीढ़ी के लिए यह गुंजाइश छोड़ी कि वह अपने समय की परिस्थितियों, अपने समय के ज्ञान, अपने समय की आवश्यकताओं के अनुसार इसमें संशोधन कर सकें।






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