
प्राकृतिक संसाधनों का हो रहा है बेशर्म दोहन, शासन को करोड़ों का नुकसान
ग्राम पंचायत पोटिया में सरपंच-पंचों की मिलीभगत का आरोप
तालाब सौंदर्यीकरण की आड़ में माफिया को मिल रही खनन की खुली छूट
नारधा, मूड़पार, गिरहोला सहित कई गांवों में अवैध उत्खनन जारी
जनप्रतिनिधियों की मांग – हो मुरूम उत्खनन का व्यापक सर्वे और जांच
नंदिनी अहिवारा, दुर्ग। अहिवारा विधानसभा अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में मुरूम माफिया का खुलेआम तांडव जारी है। बिना किसी भय के माफिया भारी मात्रा में मुरूम उत्खनन कर प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रहा है, जिससे शासन को करोड़ों रुपये के राजस्व का नुकसान हो रहा है। खास बात यह है कि यह सब कुछ खनिज प्रशासन की मिलीभगत और स्थानीय राजनैतिक संरक्षण में हो रहा है।
खनिज विभाग की चुप्पी और प्रशासन की नाकामी
सूत्रों के अनुसार, ग्राम पंचायत पोटिया (देवरझाल) में हाल ही में हुए चुनाव के बाद एक 1000 घन मीटर मुरूम उत्खनन प्रस्ताव पास कराया गया, लेकिन उत्खनन किसी और व्यक्ति द्वारा किया जा रहा है। इस पर स्थानीय सरपंच व कुछ पंचों ने आपत्ति भी दर्ज कराई थी, फिर भी खनन कार्य बदस्तूर जारी है। यह प्रशासन और पंचायत की मिलीभगत की ओर संकेत करता है।
प्रभावित क्षेत्र:
मुरूम खनन का यह अवैध कारोबार केवल पोटिया तक सीमित नहीं है, बल्कि यह नारधा, मूड़पार, गिरहोला, पाहंदा, नंनकट्टी, कोड़िया, परसदा सहित अन्य ग्रामों में भी धड़ल्ले से जारी है।
पंचायतों की भूमिका पर सवाल
जानकारी के अनुसार, तालाब सौंदर्यीकरण, समतलीकरण और गहरीकरण जैसे कार्यों की आड़ में सरपंच और पंच मुरूम माफिया से मोटी रकम लेकर प्रस्ताव पास करते हैं, जिसके बाद खनिज विभाग कागज़ी खानापूर्ति कर उत्खनन की अनुमति दे देता है। इससे सरकारी जमीन का दुरुपयोग हो रहा है।
जनहित की मांग:
जनप्रतिनिधियों और स्थानीय नागरिकों ने जिलाधीश दुर्ग से अपील की है कि मुरूम खनन पर विस्तृत सर्वे कराकर यह जांच कराई जाए कि:
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अब तक कितनी मात्रा में मुरूम निकाली गई?
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उसका परिवहन कहां-कहां हुआ?
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कितनी राशि शासन को प्राप्त हुई?
यह जांच खनिज अधिकारियों की भूमिका को भी उजागर कर सकती है, जिससे दोषियों पर कार्रवाई की जा सके।
खुलासा:
अहिवारा विधानसभा क्षेत्र में प्राकृतिक संसाधनों का दोहन, सरकारी जमीन का दुरुपयोग और शासन को नुकसान की यह कहानी शासन और प्रशासन की गंभीर उदासीनता को दर्शाती है। यदि समय रहते कार्रवाई नहीं हुई, तो यह पर्यावरणीय असंतुलन और स्थानीय प्रशासन पर अविश्वास का कारण बन सकता है।
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